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तु॒चे तना॑य॒ तत्सु नो॒ द्राघी॑य॒ आयु॑र्जी॒वसे॑ । आदि॑त्यासः सुमहसः कृ॒णोत॑न ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tuce tanāya tat su no drāghīya āyur jīvase | ādityāsaḥ sumahasaḥ kṛṇotana ||

पद पाठ

तु॒चे । तना॑य । तत् । सु । नः॒ । द्राघी॑यः । आयुः॑ । जी॒वसे॑ । आदि॑त्यासः । सु॒ऽम॒ह॒सः॒ । कृ॒णोत॑न ॥ ८.१८.१८

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:18» मन्त्र:18 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:18


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शिव शंकर शर्मा

सङ्गति का फलादि दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (सुमहसः) हे सुतेजा (आदित्यासः) आचार्य्यो ! आप (तुचे) पुत्र की (तनयाय) और उसके पुत्र की अर्थात् मेरे पौत्र की (द्राघीयः) अतिदीर्घ (तत्) उस (आयुः) आयु को (जीवसे) जीवन के लिये (सुकृणोतन) अच्छे प्रकार करें ॥१८॥
भावार्थभाषाः - आचार्य्यादिकों की शिक्षा पर चलने से मनुष्य की आयु बढ़ी है। अतः बालकों को उनके निकट सदा भेजना उचित है ॥१८॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुमहसः) हे सुन्दर तेजवाले (आदित्यासः) विद्वानों ! (नः) हमारे (तुचे) पुत्र के लिये (तनाय) तथा पौत्र के लिये (जीवसे) सुजीवननिमित्त (तत्) उस (द्राघीयः) अतिदीर्घ (स्वायुः) सुखमय आयु को (कृणोतन) करें ॥१८॥
भावार्थभाषाः - हे तेजस्वी विद्वान् पुरुषो ! आप हमारे पुत्र-पौत्रादि सन्तानों को भी ब्रह्मचर्य्यपूर्वक विद्याध्ययन करने का उपदेश करें, जिससे वे पवित्र जीवनवाले हों और सुखमय आयु व्यतीत करते हुए दीर्घजीवी हों, क्योंकि सदाचारसम्पन्न विद्वान् पुरुष ही सुखमय जीवन व्यतीत कर सकते हैं, मूर्ख नहीं ॥१८॥
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शिव शंकर शर्मा

संगतिफलं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सुमहसः=सुतेजस्काः। आदित्यासः=आदित्या आचार्य्याः। यूयम्। तुचे=पुत्राय। तनयाय=तत्पुत्राय च पौत्राय। जीवसे=जीवनाय। द्राघीयः=दीर्घतमम्। तत्प्रसिद्धमुपकारी आयुः। कृणोतन=कुरुत ॥१८॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुमहसः, आदित्यासः) हे सुतेजस्काः विद्वांसः ! (नः) अस्माकम् (तुचे) पुत्राय (तनाय) पौत्राय च (जीवसे) जीवनाय (तत्) तादृशम् (द्राघीयः) महत्तरम् (स्वायुः) सुखायुः (कृणोतन) कुर्वन्तु ॥१८॥